DadaBhai Naoroji Biography in Hindi – दादाभाई नौरोजी ने भारतीय इतिहास में महान व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान बनायीं है, वे एक पारसी बुद्धिजीवी व्यक्ति, शिक्षाप्रेमी, कॉटन के व्यापारी और भारत के स्वतंत्रता सेनानी और महान राजनीतिक नेता थे.
नौरोजी जी को भारत का ग्रैंड ओल्ड मैन कहा जाता है, इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रचयिता भी कहते है, इन्होने ने ही ए. ओ. ह्यूम (A. O. Hyum) दिन्शाव अदुल्जी के साथ मिलकर इस पार्टी को बनाया था, वे तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे.
यह पहले ऐसे भारतीय नागरिक थे जो किसी कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किये गये थे, 1906 में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार से पहली बार स्वराज की मांग की थी, ये बात सबसे पहले दादा भाई नौरोजी ने ही लोगो के सामने रखी.
दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय | DadaBhai Naoroji Biography in Hindi
पूरा नाम – दादा भाई पालनजी नौरोजी
जन्म – 04 सितम्बर 1825
जन्मस्थान – बम्बई (अब मुंबई)
पिता – पालनजी दोर्डी नौरोजी
माता – माणिक बाई
पत्नी – गुलबाई
राजनीतिक पार्टी – लिबरल
अन्य पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
निवास – लंदन
मृत्यु – 30 जून, 1917
दादा भाई नौरोजी का जन्म 04 सितम्बर, 1825 को बम्बई में एक गरीब पारसी परिवार में हुआ था, जब दादा भाई की उम्र मात्र 4 साल की थी तब इनके पिता का देहांत हो गया इसके बाद इनकी माता ने ही इनकी परवरिश की.
पिता का साया न होने के कारण इस परिवार को बहुत सी आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा, इनकी माता अनपढ़ थी पर वो दादा भाई नौरोजी यानि अपने बेटे को अच्छी अंग्रेजी शिक्षा देना चाहती थी इसीलिए इनकी शिक्षा में इनकी माता का विशेष योगदान था.
बाल विवाह की कुप्रथा के चलते मात्र 11 की उम्र में ही इनका विवाह कर दिया गया इनकी पत्नी का नाम गुल्बाई था, दादाभाई के एक पुत्र और दो पुत्री सहित कुल तीन संताने है.
दादा भाई की प्रारंभिक शिक्षा नेटिव एजुकेशन सोसायटी स्कूल से हुई, इसके बाद दादाभाई ने एल्फिनस्टोन इंस्टिट्यूट बाम्बे से इन्होने दुनिया का साहित्य पढ़ा तथा दादाभाई गणित और अंग्रेजी विषय में बहुत अच्छे थे, क्योकि इन्हें 15 साल की उम्र में ही सरकारी स्कॉलरशिप मिली थी.
दादाभाई नौरोजी का करियर – Dadabhai Naoroji Career
दादाभाई के एल्फिनस्टोन इंस्टिट्यूट से पढाई पूरी करते ही इन्हें यहाँ का प्रोफेसर बना दिया गया था, उस समय पर ऐसा शैक्षणिक दर्जा पाने वाले ये पहले व्यक्ति थे. दादाभाई एक पुरोहित परिवार से थे इसीलिए इन्होने 01 अगस्त 1851 को रहनुमई मज्दयासने सभा का गठन किया ताकि पारसी धर्म को इकठ्ठा किया जा सके यह सभा आज भी मुंबई में चलायी जा रही है.
इन्होने 1853 में फोर्थनाईट पब्लिकेशन के तहत रास्ट गोफ्तार बनाया था, जो की आम आदमी की पारसी अवधारणाओ को स्पष्ट करने में सहायक था.
1855 में उन्होंने कॉमा & कंपनी के सहयोगी बनने की इच्छा से लंदन की यात्रा की और साथ ही पहली यह पहली ऐसी भारतीय कंपनी बनी जो की ब्रिटेन में स्थापित हुई, लेकिन अगले 3 साल में ही इन्होने इस्तीफ़ा दे दिया.
इसके बाद 1859 में खुद की एक कॉटन ट्रेडिंग कम्पनी स्थापित की जो की बाद में दादाभाई नौरोजी & कंपनी के नाम से जानी जाने लगी और ये university of london के पहले प्रोफेसर बने.
1860 के दशक की शुरुआत में ही दादाभाई सक्रीय रूप से भारतीयों के उत्थान के लिये कार्य करना शुरू कर दिया क्योकि वो भारत में ब्रिटिशो की प्रवासी शाशन के सख्त खिलाफ थे. इन्होने ने ही सबसे पहले ड्रेन थ्योरी के माध्यम से बताया की अंग्रेज कैसे भारतीय लोगो और भारत का शोषण करते है और देश को गरीब बना रहे है.
इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद ये भारत वापस आ गये इसके बाद 1874 में बरोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड तृतीय के संरक्षण में काम करने लगे और यही से उनका सामाजिक जीवन शुरू हुआ और वो फिर महाराजा के दीवान बना दिए गये.
1885 – 1888 के बीच में मुंबई की विधान परिषद् के सदस्य के रूप में भी कार्य किया, 1886 में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया, इसके आलावा ये 1893 एक 1906 में भी कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये.
जब ये तीसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तब इन्होने गरमपंथियों और नरमपंथियों के बीच हो रहे विभाजन को रोका था, और 1906 में दादाभाई नौरोजी ने सबके सामने कांग्रेस पार्टी के साथ स्वराज की मांग की थी. ये विरोध के लिये अहिंसा वादी और संवैधानिक तरीकों पर याकीन करते थे.
दादाभाई का राजनीतिक जीवन – Dada Bhai Naoroji Political Career
दादाभाई ने 1852 में भारतीय राजनीति में कदम रखा और इन्होने दृढ़ता से 1853 में ईस्ट इंडिया कंपनी के लीज नवीनीकरण का विरोध किया तथा इस सम्बन्ध में दादाभाई ने ब्रिटिश सरकार को याचिका भी भेजी थी.
लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इनकी याचिका ख़ारिज करके लीज को रिन्यू कर दिया था जिसमे दादाभाई का ये मानना था की भारत में ब्रिटिश शाशन यहाँ के अज्ञान लोगो की वजह से है जिसके बाद उन्होंने वयस्कों की शिक्षा के लिये ज्ञान प्रसारक मण्डली की स्थापना की.
भारत की परेशानी बताने के लिये दादाभाई ने राज्यपालों और वायसरायों को कई याचिकाए लिखी पर सभी को नज़रंदाज़ कर दिया गया तब दादाभाई ने भारत एवं भारतीयों की दुर्दशा को ठीक से ब्रिटिश संसद को बताने के लिये इंग्लैंड गये.
दादाभाई का इंग्लैंड में प्रयास
इंग्लैंड जाने के बाद दादाभाई ने वहा रहकर अच्छी से अच्छी सोसाएटी को ज्वाइन किया और फिर भारत की दुर्दशा बताने के लिये कई भाषण भी दिए और न जाने कितने लेख लिखे, फिर 01 दिसम्बर 1866 को दादाभाई ने ईस्ट इंडिया इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की और इस संघ में भारत के उच्च पद के अधिकारी और कुछ ब्रिटिश संसद के सदस्य शामिल थे.
1880 में एकबार फिर से दादभाई लंदन गये और तब इन्हें 1892 में हुए वहा के आम चुनाव में इन्हें सेंट्रल फ़िंसबरी द्वारा लिबरल पार्टी के उम्मीदवार घोषित किये गये, जहा पर ये पहले भारतीय ब्रिटिश एमपी बने.
उन्होंने भारत एवं इंग्लैंड में ICS की प्रारंभिक परीक्षाओं के आयोजन के लिये, ब्रिटिश संसद में एक बिल पारित कराया और उन्होंने भारत और इंग्लैंड के बीच प्रशाशनिक और सैन्य खर्च के वितरण के लिये विले आयोग और भारत व्यय पर रॉयल कमीशन बनाया.
दादाभाई नौरोजी की उपलब्धि – DadaBhai Naoroji Achievment
इनके नाम पर एक सड़क का नाम दादाभाई नौरोजी सड़क रखा गया है.
दादाभाई नौरोजी भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन मने जाते है.
पहले भारतीय जिन्हें ब्रिटिशो ने प्रोफेसर बनाया.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष 3 बार बने.
रॉयल कमीशन के पहले भारतीय सदस्य.
आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक.
दादाभाई मृत्यु – (Dadabhai Naoroji Death)
अपने जीवन के अंतिम दिनों में दादाभाई नौरोजी भारतीयों पर हुए शोषण के बारे में लिखा करते थे, साथ ही इस तरह के विषयों पर भाषण भी दिया करते थे, इन्होने ने ही भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन की नीवं रखी थी.
भारत के महान स्वतंत्रता सेंनानी का 91 वर्ष की आयु में 30 जून, 1917 में निधन हो गया और भारत का ये चिराग हमेशा के लिये बुझ गया.
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